Sunday, 23 August 2020

पाकिस्तान में जैन मंदिर और मस्जिद पर 'पोत दी सफ़ेदी', हो रही है आलोचना

    alt="ऐतिहासिक धार्मिक इमारत" src="https://ichef.bbci.co.uk/news/624/cpsprodpb/315B/production/_113953621__113918050_mariv-1-1.jpg" />

style="background: rgb(255, 255, 255); border-radius: 4px; border: 1px solid rgb(204, 204, 204); box-sizing: border-box; : #313131; font-family: menlo, monaco, consolas, "courier new", monospace; font-size: 15px; line-height: 1.5; margin-bottom: 12px; margin-top: 0px; overflow-wrap: break-word; overflow: auto; padding: 11.5px; word-break: break-all;">

पाकिस्तान के सिंध प्रांत में दो ऐतिहासिक धार्मिक इमारतों की मरम्मत के दौरान पुरातत्व विभाग की तरफ से 'व्हाइट वॉश' किया गया है. जिस पर विशेषज्ञों का कहना है कि ये उन इमारतों की पहचान मिटाने के समान है.

;">दूसरी ओर प्रांतीय पुरातत्व विभाग का कहना है कि इनकी मरम्मत के लिए प्राचीन निर्माण सामग्री का ही इस्तेमाल किया गया है.

सांस्कृतिक विभाग और पुरातत्व विभाग ने ट्विटर पर अपने सरकारी हैंडल से हैदराबाद से 25 किलोमीटर दूर टिंडो फ़ज़ल में स्थित ऐतिहासिक मस्जिद की मरम्मत की तस्वीरें शेयर की थी.

अधिकारियों की तरफ़ से बताया गया था कि पुरातत्व के मानकों को ध्यान में रखते हुए इसकी मरम्मत की गई है, मरम्मत के बाद की और इससे पहले की तस्वीरों में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो को भी टैग किया गया था.

इन तस्वीरों की सोशल मीडिया पर कड़ी आलोचना की गई, जिसके बाद सांस्कृतिक विभाग और पुरातत्व विभाग ने इन तस्वीरों को हटा दिया ये तस्वीरें हिंगोरानी माड़ियों के अवशेषों की थी. पुरातत्व विभाग के अनुसार हिंगोरानी माड़ियों (हवेली) के नाम से ये सैय्यदों का गढ़ था. कल्होड़ा शासनकाल के शुरू में अफ़ग़ान बादशाह मदद ख़ान पठान ने वर्ष 1775 में हमला करके इसको तबाह कर दिया था.


ऐतिहासिक धार्मिक इमारतइमेज कॉपीरइटSORAJ JAIPAL

इस हमले में दो मस्जिदें और एक मक़बरा और कुछ हवेलियाँ बच गई थीं, उस समय नूर मोहम्मद कल्होड़ो सिंध के शासक थे .

प्रांतीय संस्कृति मंत्री सैयद सरदार अली शाह ने बताया कि ये कल्होड़ा शासनकाल की इमारत है, जो वास्तुकला में चूने का इस्तेमाल करते थे. उस समय ईंट, चेरोली और चूना इस्तेमाल होता था. इसको ध्यान में रखते हुए ही इस मस्जिद की मरम्मत की गई है .

"ईंटों और चूने (लाइम स्टोन) के इस्तेमाल के बाद अगर इसको छोड़ दिया जाए, तो जो दरारें या स्पेस हैं, उससे इमारत कमज़ोर हो सकती है. इसलिए इसको मज़बूत और सुरक्षित बनाने के लिए इस पर बाहर भी लाइम स्टोन लगाया जाता है, ये व्हाइट वॉश बिल्कुल नहीं है."

प्रांतीय मंत्री का कहना है कि ट्विटर हैंडल विभाग का स्टाफ़ देखता है और उस पर आने वाले कमेंट्स देख क\र घबरा कर तस्वीरें हटाई गई और अब पूरी जानकारी के साथ उन्हें दोबारा शेयर किया जाएगा.


ये ऐतिहासिक इमारतें कहाँ हैं?

ऐतिहासिक धार्मिक इमारत पर सफेदी पोतने पर ट्वीट

थार डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर मठ्ठी से लगभग सौ सवा सौ किलो मीटर दूर वर्तमान वीरा वाह शहर और पहले पारी नगर, भुड़ेसर और नगर पारकर शहर में स्थित जैन धर्म के इन मंदिरों की गिनती इस क्षेत्र के पुराने मंदिरों में होती है.

भुड़ेसर और वेरा वाह में स्थित कुछ मंदिरों की मरम्मत कराई गई है. सबसे बड़े मंदिर को गोड़ी मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर के गुंबद के अंदर चित्रात्मक कहानी मौजूद है.

पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर जनरल मंज़ूर कैनासरों ने बीबीसी से बात करते हुए दवा किया है कि जैन मंदिरों की मरम्मत में कोई कोताही नहीं बरती गई है और ये काम पुरातत्व विभाग और वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार हुआ है.

उनका कहना था कि नगर पारकर और भोड़ेसर में जैन मंदिरों की मरम्मत का काम सिंध एंडावमेंट ट्रस्ट कर रहा है, जबकि दूसरी जगहों पर सिंध सरकार की ज़िम्मेदारी है.

उन्होंने ये भी कहा कि वेरा वाह मंदिर के गुंबद को व्हाइट वाश किया गया है, जबकि गूड़ी मंदिर की छत पर मौजूद चित्रात्मक कहानी अपनी वास्तविक स्थिति में मौजूद है.

डायरेक्टर जनरल के अनुसार ये मंदिर सिंध सरकार के स्वामित्व में है और एंडावमेंट फंड उसकी अनुमति से मंदिरों की मरम्मत में ख़र्च हो रहा है. उनका कहना था कि सिंध सरकार के इंजीनियर्स ने जगह का निरीक्षण किया है और इसमें कोई लापरवाही नहीं बरती गई है.

प्रांतीय मंत्री सैयद सरदार अली शाह ने भी ट्विटर पर लिखा है, "हम जाँच कर रहे हैं. हालाँकि नगर प्रकार शहर और भुड़ेसर के जैन मंदिर के संरक्षण के लिए एंडावमेंट फंड कर रहा है जबकि दूसरी इमारतों के लिए सिंध सरकार ने फंड किया है."

प्रांतीय मंत्री ने गूड़ी मंदिर पर कोई बात नहीं की है.

ऐतिहासिक धार्मिक इमारत

 ये क्षेत्र जैन धर्म वालों का गढ़ रहा है.


"इस्लाम के आने से पहले से लेकर 13वीं सदी तक जैन समुदाय ने व्यापार में खूब तरक़्क़ी की और जब ये समुदाय समृद्ध हुआ, तो इन्होंने इन मंदिरों का निर्माण कराया. मौजूदा मंदिर 12वीं और 13वीं सदी के बने हुए हैं . "

याद रहे कि लगभग छह सौ साल ईसा पूर्व में महावीर नामक व्यक्ति ने जैन धर्म की स्थापना की थी.

व्हाइट वॉश से "पहचान ही ख़त्म कर दी गई"

ऐतिहासिक धार्मिक इमारत

मशहूर पुरातत्विद और यूनेस्को की पूर्व कंसल्टेंट यास्मीन लारी का कहना है कि संरक्षण का ये मूल सिद्धांत है कि कम से कम हस्तक्षेप किया जाए और ग़ैर ज़रूरी तौर पर किसी चीज़ में बदलाव न किया जाए और उन चीज़ों को वास्तविक स्थिति में ही रखा जाए.

अगर कोई पत्थर टूटा हुआ है, तो वो वहीं रहना चाहिए. अगर कोई क्रैक या दरार है, तो और दरारें पड़ने को रोका जाए.

यास्मीन लारी का कहना है कि अगर सब कुछ नया लगा दिया गया है, तो फिर उसकी ऐतिहासिक हैसियत ही ख़त्म कर दी गई है.

"हमने तो अपनी आने वाली नस्लों को ये दिखाना था कि उस समय की वास्तुकला कैसी थी, किस तरह के एक्सपर्ट कारीगर थे, क्या मैटेरियल था,  अब जब नया बना दिया जाएगा, तो वो तो नही ही होगा."

t; font-variant-east-asian: inherit; font-variant-numeric: inherit; font-weight: inherit; line-height: 1.44444; margin: 18px 0px 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">उन्होंने गूड़ी मंदिर के गुंबद पर चित्रात्मक कहानी का हवाला देते हुए कि जो लिखी गई थी, उसको तो उसी स्थिति में रखना था उसका व्हाइट वाश करके तो बहुत ही ज़्यादती की गई है, उससे तो उसकी पहचान ही ख़त्म कर दी गई है.


सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

ट्विटर पोस्ट @guldaar: The culture, antiquities and archaeology department of Sindh's twitter account has deleted their nonsensical "restoration and preservation" work photos on a three centuries old building. That doesn't eliminate the fact that they destroyed built heritage. Here's a refresher

शल मीडिया पर इन तस्वीरों को अधिकारियों ने अपलोड करने के बाद हटा तो दिया, लेकिन इस विषय पर यूज़र्स ने चर्चा बाद में भी जारी राखी.

हम्माद नामी एक यूज़र ने अपने ट्वीट में सांस्कृतिक मंत्री से कहा कि मरम्मत का मतलब है सिर्फ़ टूटे हिस्से को ठीक करना. संरक्षण का मतलब है उसके रंग और ख़ूबसूरती को पहले जैसा रखा जाए. इस सफ़ेद रंग ने असल रंग और ख़ूबसूरती को बर्बाद कर दिया है.

नुज़हत एस सिद्दीक़ी ने सरकार के इस क़दम पर चुभते लहजे में शिकायत की.

एक विरासत को डेरे वाली कोठी में बदलने के लिए शुक्रिया.

सिंध सरकार की तरफ से ट्वीट हटाने पर भी यूज़र्स ने व्यंग्यात्मक ट्वीट्स की बौछार की.

ट्विटर हैंडल आर्चर पर लिखा गया कि अगर उच्च पदों पर बैठे अयोग्य व्यक्तियों को एक तस्वीर में बयान किया जा सकता है, तो वो ये होती है.

t-asian: inherit; font-variant-numeric: inherit; font-weight: inherit; line-height: 1.44444; margin: 18px 0px 0px; padding: 0px; vertical-align: baseline;">ब्लॉगर हारून रियाज़ ने लिखा कि सिंध सरकार को यक़ीनन अहसास हो गया कि मरम्मत से संबंधित ट्वीट बैक फायर हुआ. ट्वीट तो डिलीट हो ही सकता है बस मरम्मत के काम पर तवज्जो दें.



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